मंगलवार, 25 अक्तूबर 2011

क्या फर्क पड़ता है ,,,,

हाँथ है या फूल है ,,
अंतर करना फिजूल है ,,
सत्ता ,,सिम्बोल बदल सकती है,,
चरित्र नहीं ,,,
पांच साल लूट की नीलामी
में सहमती देकर
आम आदमी तो न्यूज़ चैनल
देखने में मशगूल है ,,,
जिसे परिवर्तन कहते हो
वह दुसरो को दिया गया मौका है,,,
आखिर ,,,,,,,,,,
सर्वांगीं विकास लोकतंत्र का मूल है ,,,

अनुभव

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