गुरुवार, 20 दिसंबर 2018

घनश्याम सिंह गुप्त

जब हम इतिहास खोजने को निकलते है,,तो परत दर परत खुद को ही पाते है,,,, पहचानते है,,,संजीव भाई ने इस किताब में ,काल सरिता के तल पे बैठे सुवर्ण को छन्नी से छाना है,,,इतिहास पुरुष घनश्याम सिंह गुप्त की उपलब्धियां ,,राष्ट्र निर्माण की वो बुनियादी ईंटे है,, जो छतीसगढ़ की माटी से बनी और तपी है ,,स्वतन्त्रता संग्राम के योद्धा के रूप में , हिंदी भाषा पुरोधा के रूप में ये किताब गुप्त जी के कार्यो को सामने लाती है वन्ही सविधान सभा मे हुए तर्को और विमर्शो को उतनी ही सरल भाषा मे अभिव्यक्त करती है,, श्री घनश्याम सिंह गुप्त की उपलब्धिया ,,,छत्तीसगढ़ के नागरिकों को सदैव गौरवान्वित करेंगी,, संजीव भाई की लेखनी को साधुवाद जो अपने नायक से ,,,अपने समृद्ध संस्कारो से फिर जोड़ दिया,,,,

सोमवार, 3 दिसंबर 2018

गौमूत्र कथा,,बठवा राजू की

गौमूत्र  कथा,,बठवा राजू की

बठवा राजू था  तो पेशे का जबरजस्त टेलर पर सुभाव से था भयंकर पियक्कड़ ,,,सूर्य नमस्कार के साथ जो बाटली खुलती फिर ,,गौधुली बेला तलक सुनहरा डिस्पोजल दुकान में चमकता रहता,, ,दारू की समस्त ऊर्जा,, दिन भर चौक में राजनीतिक बहस बाजी में औऱ बची खुची रात में धर्मपत्नी और घरवालो पर निकलती,,, रोज के गृह क्लेश और बठवा के गिरते स्वास्थ्य को देखते हुए  घरवालो ने एक रोज निश्चय किया,, दारू अब छुड़ानी होगी ,,फिर क्या,,कई देशी नुख्शों की असफल अजमाइश के बाद पहुचे प्राचीन योगिक विद्या के आधुनिक व्यापारी बाबा जी के दर पर ,,  और वन्ही बाबा जी से ब्रह्म ज्ञान मिला,,नश्वर संसार की सभी समस्याओं का समाधान किसी दूसरे पीले सुनहरे द्रव्य में छिपा है,,,वो है पवित्र गौमूत्र,,
             
       अब राजू ने गौमूत्र पान का भयंकर अभ्यास प्रारम्भ किया,,चमत्कारिक लाभ मिला,, जब कभी तलब तकलीफ देती फिर डिस्पोजल सज जाती ,,गौमूत्र से भर जाती,, नशा ऐसा चढ़ा की बोतल बन्द कम्पनी पॉर्ड्क्ट की जगह सीधे भैसस्थान,, , गौ परिवार माल खाने तक पहुच गई,,,,काली गाय का मूत्र,, बछरू का मूत्र,, बैला भैसा का मूत्र सभी ब्रांड आजमा लिए,,  मोहल्ले में राजू गौमूत्र विज्ञान का आइंस्टाइन बन गया,,बहस के दौरान कोई भी मुद्दा हो ,,राम मंदिर से लेकर बढ़ती महंगाई तक बीच मे गौमूत्र महकने लगती,,घर मे भी नहाने के जल से लेकर साग सब्जी में भी मूत्र टपकने लगी,
                             ,प्रारम्भ में तो घर वालों बठवा के इस धर्मचक्रप्रवर्तन का घर घर गुणगान किया,,पर धीरे धीरे फिर कलह के स्वर उभरने लगे,,,बाई दाई पे दोष मढ़ने लगी,,पूरा घर कोठा कोठा महकने लगा,,एकर ले बने तो पहिले रहे,,जीना मुहाल होंगे,,पर अब तीर कोठार से निकल चुका था,,राजू को पूरी भी गौमूत्र में तली होनी चाहिए थी,, गली में जब वो निकलता तो चौक तक के गाय गरवा भाग जाते,, बरतन धरकर पीछे पीछे राजू,, बेजुबान जीव कैसे बताए  कि हर वक्त विसर्जन सम्भव नही है ,,
   वक्त फिर पलटने लगा,,कलेजा जिगर जब फटने लगा,,तब घरवाले स्पेसलिस्ट डाक्टर के पास लेकर पहुचे,,, डाक्टर ने सभी रिपोर्ट देख कर अचरज में आंखे चौड़ी कर दी,,रोज एक हंडा गौमूत्र ,,,,पीते हो,,एक काम करो किडनी ट्रांसप्लांट करके,,,गाय की लगवा लो,,वो ही पचा पाएगी इसे,,, रक्त में हीमोग्लोबिन नही मूत्र तैर रही है,,इससे अच्छा स्वमूत्र पान कर लेते,,पचा तो लेते ,,घर वालो ने हाथ जोड़ लिये,,डाक्टर साहब कृपा कीजिये ,,कोई ठोस दवाई ही बताइए तरल नही,,आखिरकार समस्या समझ आ ही गई,,,दोष पीले द्रव्य का नहीं,, सुभाव का था,,जो भी करो अति में करो,,,फिर चाहे मदिरापान हो या गौमूत्रपान,,खबर है कि बठवा राजू इन दिनों रिहेबिलिटेशन सेंटर में भर्ती  है,, पहला मरीज ,,गौ मूत्र पान छुड़वाने वास्ते,

अनुभव
( भावुक लोग न पढे)