शुक्रवार, 8 दिसंबर 2017

गुरुवार, 12 अक्तूबर 2017

लोकतंत्र के लकड़ बग्घे

लोकतंत्र के लकड़बग्घे
शिकार नही करते,
इत्मीनान से जूठन खाते है
मानसून मैदानों को हरियाती है
हिरण तब चरने आते है
शेरों के झुंड

सोमवार, 4 सितंबर 2017

कौवा हँस रहा था
बन्द मुर्गे की हालत पे
मुर्ग मुसलम पकना था
आज रात की दावत में
मुर्गा होकर गम्भीर कुड़कुड़या

रविवार, 6 अगस्त 2017

सर सर सर सर

सर सर सर सर,,,,

,, था अफसर ,
   झुका कर सर,,,
   मोबाइल पर ,,
   रटता रहता,,
   अक्सर,,
   सर सर सर सर,,,,
,,,सुन कर,,पल भर
   सहम जाता दफ्तर
    नया आदेश हे !ईश्वर
,,,मगर,,,
,,,,फिर गूंज उठता स्वर
,,,, हर इक मेज टेबल पर
,,,,,,सर सर सर सर,,,,,

अनुभव,,,

शनिवार, 22 जुलाई 2017

लफ्ज लकवे से लाचार हुए
ख़बर खुद से खबरदार हुए
खून
आँखों से पसीना बहाते है

शुक्रवार, 7 जुलाई 2017

बोनी होइस धान के,, बांचे सीडिंग आधार के,,,,
सब्बो खाता जोड़े के,,योजना हरे सरकार के

,,अपन आधार नम्बर ल खाता ले जोड़वाए ले ही, अब शासन के योजना के लाभ मिलही,,

अपन पटवारी ल देवो आज ही अपन आधार नम्बर

शनिवार, 1 जुलाई 2017

आज बाजार में,,

किसे ओ
बरबट्टी का भाव
पांच रुपिया पाव
औ दस रुपिया जेस्टी
जेस्टी ,,,ये का नवा साग आगे हे
साग नही बाबू
टेक्स लागे हे
हरियर साग

बुधवार, 28 जून 2017

बंटवारा

बंटवारा

आग से अस्सी फीसद झुलसी हुई हेमा बिस्तर में तरमरा रही थी पीड़ा से,,,,पति का प्रेम ,,जमा पूंजी जैसे कम होता गया,,आखिर दवा दारू तो चहिये ही,,,अस्पताल के बिस्तरा से ही चीखी,,मोर बाप के जमीन ल बेंच ,,भगा के बिहाव करे ले हमर हिस्सा बांटा थोड़े सिरा जाही,,,,,पति बात लपक गया,,
          आवेदिका को पुश्तैनी जमीन में बंटवारा चाही इलाज खातिर,,बूढ़े दाई ददा बिरादरी में प्रेम बिहाव का दाढ़ चुकाए बैठे थे ,,तहसील में आन जात दामाद को परघाते चीख पड़े,,मन पसन्द बिहाव में का हिस्सा का बांटा,, ,,,,भगा उड़ा के लेगे रेहेस ,,बेटी ल,,अब जरा दे या पौल दे,,,ये जमीन नही हमर बेटा हरे,,डोकरा
डोकरी के गुजारा साहेब,,,उही ल झीख देबे,,त टोटा घलो ल मसक दे,,,येई जमीन मां आँखि गाड़े रहे तभे,,,भगाये रेहेस ,,सुआ कस मोर बेटी ल ,,मदहा नितो,,,
              दाई ददा अपनी बेटी के आवेदन का प्रति परिकच्छन ,,बर्न यूनिट वार्ड में कर रहे थे,,हेमा किसे जरेस बेटी,,,इही आगि ता नई बार दिस ओ,,दमाद नशे में भी अपने अधिकार बोध से दूर नही था,,,फेर फालतू बात,,,,हेमा की पीड़ा उसकी दुधमुंही बच्ची के कल्पने से होते हुए बूढ़े मां बाप की आंखों से फूट पड़ी,,जब दिलो के बंधन खुल गए,,तो फिर दमाद जमीन बंधक चढ़ा आया ,,इलाज खतिर,,,बंटवारा,, प्रकरण खारिज,,,

अनुभव

रविवार, 25 जून 2017

सुरता

सुरता भूलाता नई
मया सिराता नई
चाउर कस,,जुन्नाता
उमर संग ममहाता,

फेर बसियाता नई,,,

सोमवार, 19 जून 2017

उल्लू

साहब बोले उल्लू हो
फिर पब्लिक बोली उल्लू हो
अब खुद लगाता है उल्लू हूं
जब दुनिया चूहों का घर है
तो,,उल्लू होना बेहतर है,,,

अनुभव

शुक्रवार, 2 जून 2017

सन्तुलित और संयमित आहार,,,जीवन की दशा और दिशा तय करते है,,,भोजन की ऊर्जा से शरीर चलता है पर स्वाद की भूख इसे एक ऐसा गोडाउन बना देती है जिसमे हम वसा की परतें जमा करते जाते है,,जाहिर है भंडार गृह हुआ शरीर धीमा और मष्तिष्क  मन्द  होगा,,आज डिजिटल इंडिया के दौर में अब शरीर से डिजिटल स्फूर्ति की दरकार है केलोरी की काउंटिंग ही आपको समय के साथ भागने की शक्ति दे सकती है,,,,एक शहरी व्यक्ति 2200 केलोरी ऊर्जा से अधिक जो कुछ भी खाता है ,, वो भोजन उसे रोगों के अलावा और कुछ नही दे सकता,,, इसी ऊर्जा का मैनजमेंट ,,अब सबसे बड़ा मैनजमेंट है,, जो स्वच्छ भारत और स्वस्थ्य भारत के सपने को साकार करेगा

शुक्रवार, 21 अप्रैल 2017

भट्टी

भट्टी किथें बत्ती ल
हाय दई,, बहिनी
किसे बुत्ता गेस ओ
मारे बग्ग बग्ग जरत रेहेस
यहा गर्मी में सिता गेस ओ
का करबे भट्टी ,,
देश हर बदलत हे
टट्टी खोली नई बनाय कि के
अधिकारी तको बदलत हे
अध्धि पौवा सकेल ले
लोकतंत्र भारी हे
ज्यादा झन मेच मेंचा
आज मोर ता ,,काली तोर बारी हे

अनुभव

रविवार, 16 अप्रैल 2017

खुद को तोड़ कर खुद को गढ़ता गया
देखता हूं देश मेरे साथ ही बढ़ता गया

गुरुवार, 23 मार्च 2017

शेक्सपियर के हीरो

योगी बनिस राजा,,ता
पलट दिस कहिनी
रोमियो किथें जूलियट ल
पावँ परत हो बहिनी,,,

जेन मजनू मुहब्बत
के दरिया सुखाय,,अब
शेक्सपियर के हीरो,,संग
उठक बैठक लगाय

कुँवारा मनखे के
इही रिथे बाय
हम निही पायन ता
कोनो नही पाय

अनुभव

रविवार, 5 मार्च 2017


गल्ली साफ़ हे नँल्ली साफ़ हे
अब जिल्ला मुंगेली साफ़ हे
जेकर घर के मोरी सुख गे
ते बिकट शर्मिंदा हे,,,,
फेर,,, शौचालय सब जिन्दा हे जिन्दा हे जिन्दा हे
अब आघु के चिंता हे चिंता है चिंता है

बाहिर नही जाना,,ममा
बनगे हे पैखाना ,,ममा
चघा अपन पैजामा ,,ममा
साफ़ सफई के जमाना ,,ममा,,,
अब ममा तको शर्मिंदा हे
फेर ,,,शौचालय सब जिन्दा हे,,,
अब आघु के चिंता है,,,,

उठो बबा अब आँखि खोलो
लोटा धरो,,शौचालय होलो,,
खेत कोती फिर जाना नही
गावँ के नाम डुबाना नही
बबा तको शर्मिंदा हे

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017

प्रणाम

स्वयम साक्छात,,,शिव शम्भू

चाचा ,,,प्रणाम
जय हो ,,,,चौक में समाधिस्थ चाचा की  आवाज गूंज गई,,  बुलेट के फ़टे सायलेंसर सी ,,हाथो का इशारा,,,जिसका सांकेतिक अर्थ था,,बैठो,, चूतिया कही के,,,दीवान चाचा जैसे पहुचे धर्मज्ञ के समक्छ पूरा मोहल्ला ही अज्ञान की लद्दी में लथपथ था,, सीधे कहे तो ,,चूतिया कंही के,,,
               चाचा आपातकाल के दौर की छात्र राजनीति से छनी ,,बसियाई चायपत्ती थे,,जो अब धर्म और दर्शन की चाय में महक रही थी,,,चाय डबक
पड़ी,,, देखो !! सामने स्वयम साक्छात,,,प्रणाम करो,,मेरी नजर पड़ी,, समाने खड़े पूछ को खुले जबड़े से खुजाते कुत्ते पर ,,सोचा स्वान पूजा की कोई गुप्त तांत्रिक परम्परा होगी ,,तो हाथ जोड़ने में ही खैर है,, मोहल्ले में चाचा के प्रतिरोध  पश्चात लोकप्रिय गलियों के उच्चारण और भयंकर चपाटे के किस्से कुख्यात थे,, इसलिए,,प्रणाम करना ही उचित था,,
            ,चाचा ने अपनी बोटराई आँखे तरेरी,,क्या,,मैं कौतुहल से भरा कुत्ते की ओर उन्मुख हुआ,,,बोले,,बेवकूफ,,उधर नही ,,वँहा,,,मन में प्रश्न उठा कहाँ,,, अबके सामने  बने संडास को आँखे चली गई ,,लगा शायद स्वच्छ भारत अभियान की सफलता का अभिवादन करवा रहे हो,,चाचा फिर गुर्राए,,प्रणाम करो,,मैंने फिर प्रणाम किया,,,स्वयम साक्छात,,,चाचा श्लोक बुदबुदा रहे थे,,और ,,,प्रणाम करो,,पिछले आधे घण्टे मैं बीस पच्चीस मिस्गाइडेड प्रणाम फ़ेंक चुका था,,निशाने पर थे कल्लू का चाय ठेला  ,,संडास के पीछे का बरगद या उसमें बैठा सफेद उल्लू  और न जाने क्या क्या ,,फिर चाचा का श्लोक भी सिरा गया,,,,बोले ध्यान से देखो,, दिखे स्वयम साक्छात,,,
मैंने सर अचरज में हिला दिया,,चाचा गरजे ,,बेवकूफ नितो,,वो देखो सामने ,,इस बार इशारा सीधे आसमान की ओर था,,हशिऐ जैसा चाँद मुस्कुरा रहा था ,,वो क्या है,,मैंने कहा चाँद!!!! चाँद क्या ,,,मैंने कहा पृथ्वी का उपग्रह,,,अब चाचा बिफर गये ,,बेवकूफफ़फ़फ़फ़फ़ तुम्हारे विज्ञानं की तो,, उपगरह ,,, भोले बाबा के माथे में सजा दिव्य स्वरूप नही दिखाई देता,,स्वयम साक्छात,,,मुझे तत्काल ज्ञान प्राप्ति हुई,,और औचक ही चन्द्रमा के साथ  प्रभु शंकर की हम दो हमारे दो फैमली ,,मय नंदी की कल्पना साकार हुई ,,,हाथ जोड़ कर फिर प्रणाम किया ,,ये प्रश्न ध्यान,,या विज्ञानं का नही अपितु शिव प्रसाद ""भांग"" का था,,जिसकी तीन चार  गोलियां गटक कर ,,चाचा को महाशिव ने माथे में चाँद धरे दिव्य दर्शन दिये थे, ,,स्वयम साक्छात,,,,

गुरुवार, 16 फ़रवरी 2017

बुधवार, 15 फ़रवरी 2017

टेटकी टूरी

टेटकी हे टूरी ,,
जीन्स टाइट लेवाइस
बग्ग बग्ग चिमके,,,
छुटे सैटेलाइट,,
फट ले सिग्नल मारे,,,

करारी हे कन्हिया ,,
तेमा बेल्ट फनफनिया
गदर तोर बण्डी
जरत ले  घमंडीन
डियो ममहावत हे,,

जमाना के झांकी

रविवार, 12 फ़रवरी 2017


सत्ता है अलबत्ता
मीठी मधु का छत्ता
जिसे चुना वो तो रसपान करेगा
चुनने वाले
सेवा का मौका

बुधवार, 1 फ़रवरी 2017

धन बरसेगा

इकानामिक्स टाइम्स में पढ़ा समारू
धन बरसेगा,,,
खेत बिछा कर बैठ गया वो
धन बरसेगा,,,
धान ऊगा कर,, सोंच रहा था
धन बरसेगा,,,?
बादल गरजे,,बूंदाबांदी कर गुजर गए
मेडों को थोड़ा भिगा कर,, शहर गऐ
बादल देख कर चिढ़ता है,,
समारू ,,अब फिर से देशबन्धु पढता है!!!
समझ गया है
झँट बरसेगा