शुक्रवार, 3 जून 2016

टिफिन मने,,

टिफिन मने पँराठा आलू,,,
स्कूल का टिफिन मने पँराठा ,,आलू का सब्जी और आम का आचार,,,प्लास्टिक का डब्बा खुला नही की बीच पिरेड ,, तख्ता में लिखते गुरूजी को भी जना जाता,, की सरसों का तेल ,,कस ममहा रहा है,, उन दिनों क्लास भर के टिफिन का यही व्यक्तित्व होता था,,ऐसे जब किसी छात्रा के टिफिन में ब्रेड जेम देखा तब , मानो ब्रम्ह ज्ञान मिल गया हो,,,,,अच्छा तो ये होता है टिफिन,,, पर  ,,माँ ,,माँ ये नही समझ पाई,,, पराठा की जगह ,,पूरी आलू,,,
               टिफिन का एरियल दर्शन छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस के एस 6 कोच के स्लीपर में टँगे हुए हुआ,,जब अमृतसर जा रहे परिवार ने दुरुग पहुचने के पहिले ही पूरा रसोई जमा लिया,,,,हरा नीला भिन्न भिन्न किसम का हॉट पाट,,, थोडा खीरा काट लो,,वो मासी जी वाला आचार देना,,, पापड़ रायता,,,भुजिया,,तमाम प्रकार का मलाई दार सब्जी,,हवा में लटक कर एक नजर में आधा पकवान भी कवर नही हो पाया,,,,इस दर्द में अपनी मेथी आलू और पराठा शर्मा शर्मा के हलक से उतरी,,, दिन भर के ये पक्वान देर रात भी महकने लगे तो झकना के निचे झाँका ,, बिना डिब्बे खुले ही,,,भयंकर आवाज के साथ दूसरे डिब्बे खुले ,,,
                     एक जर्मन का डिब्बा भी देखा था ,,,सुबह से  सीमेंट और ईंटा जमाता मिस्त्री ने जब हाथ धो कर आधे हाँथ का टिफिन खोला ,,,तो फकक सफेद ,,गुरमटिया चाउर दानों का भात,,किनारे पड़ी चेंच भाजी,,प्याज और हरी मिर्च ,,,और जब इसे सान कर बड़े बड़े कौर बाहर निकली जीभ में उलेडे जाने लगे तो मन किया थोडा मैं भी चख  लू,,पर हाय री शर्म,,,आखिर कार  ये सुवाद नोकरी पर आने के बाद मन भर चखा,, अब तो गावँ के दौरे का आकर्षण चूल्हे में बना किसी घर का ऐसा ही भोजन होता है,,जिसके सामने फाइव स्टार क्यूज़ीन भी फेल है,,,पर दुःख ये है की अब गुरमटिया ही नही रहा,, एच एम् टी ,,और न जाने क्या क्या,,
           आज बच्चों की टिफिन देख कर जलन हो जाती है,,चाउमिन,,सेन्डविच,,,,उतप्पम,, पर वो बिन खाये वापस लौट आते है,,,कमाल है,,अपनी टिफिन का पराठा आलू चाहे रोज कंझाते हुए खुलते थे ,,पर आम के आचार की बूच खड़े होते तलक पूरा मैदान साफ़ ,,,अब माँ की बात समझ आई ,,, टिफिन मने,,पराठा आलू
अनुभव