tag:blogger.com,1999:blog-64558943583721726502024-03-23T03:16:24.242-07:00घुरुवा ,,,,,,,ANUBHAV SHARMAhttp://www.blogger.com/profile/17033732857881627077noreply@blogger.comBlogger160125tag:blogger.com,1999:blog-6455894358372172650.post-37505913284518977612023-07-26T22:31:00.001-07:002023-07-26T22:31:17.885-07:00मधुमेय के रसिया<div>मधुमेय के रसिया</div>औचक ही डॉक्टर अवाक अर्जुन की भांति ,,मरीज को घूरने लगा,, जानो उसने कुरुक्षेत्र के मैदान में विराट स्वरूप का विहंगम दर्शन कर लिया हों ,मेज के ठीक सामने अधरों पे मन्द मन्द मुस्कुराता मनो भारी मरीज विद्यमान था ,, ठीक केसव के भांति ,,,<div> हे तात !!! आपकी रक्त वाहिनियों में शक्कर का गाढ़ा सीरा प्रवाहित हो रक्खा है,,ये रिपोर्ट कहती है,,,,कंही शरीर के बगलों में मधुमक्खियों ने छत्ता तो नही बना रखा है जरा देखिए,,,,मरीज अब भी मुस्कुरा रहा था,,मानो वो परीक्षा पूर्व ही रिजल्ट से परिचित हो,,,डॉक्टर साब नियमित दवाई तो खा ही रहा हु,,,सुबह की कब्ज से ही किसी तरह निपट कर ,,,,अनुपम उद्यान की तीन परिक्रमा ,,करेले के काढ़े के संग शामिल है,,,नियमित,,,अनजाने अनाजों के आटे में गुथी विचित्र चपातियां मुर्दे सलाज़ के ढेर में लपेट कर ,,, कंठ से धकेलता हूं,,, एक चम्मच चावल संग,,,और फिर हर गुजरते घण्टे फूटती किस्मत संग फूटा चना ,,,आखिर ये शर्करा आता कन्हा से है ,,,,मरीज ने आधा मुह बंद कर प्राचीन गाली को निकलने के पहले ही फट से चबा लिया,,,</div><div> पर डॉक्टर तक भावनाएं सम्प्रेषित हो चुकी थी,,, कुछ घड़ी में मती में लीन होकर ,,,समाधान निकला,, इन्सुलिन ,,बस अब यही चारा है,,,मानो मरीज भी इसी निष्कर्ष के साथ ही हॉस्पिटल की सीढ़ियां चढ़ा था,,इसलिए हुंह स्वर से समर्थन किया,, ये अंदर बैठे शरीर के ,,कलेजे गुर्दे भी जानते थे उन्होंने भी ढुंह करके दूसरी ध्वनि भीतर से छोड़ी,,,,,दवाई लिखते डॉक्टर को फिर कुछ छटपटाहट हुई,,, वैसे समोसे के संदर्भ में आपके क्या विचार हैं,, </div><div> मेज के उस पार वो मुख झट कटोरे भर लार से लबरेज हो गया,, झटकती हुई गरदन में से गटकते हुए,,वो गम्भीर होकर बोला,,,नही ,, कभी नही मैदे से तो मुझे एलर्जी है,,उफ्फ,तेल में डूबा हुआ वो पिरामिड ,,,ममी ही तो बनाएगा और क्या,,,उससे तो बेसन बेहतर है,,,चने की तासीर तेल की वसा को नेस्तानाबूद कर देती है वाट्स एप का मैसेज है फारवर्ड करूँ,,उसने मोबाइल उठा लिया,,, डॉक्टर की कलम प्रिस्क्रिप्शन में कंही अटक गई, नही जरूरत नही,,,फिर आलू गुंडे या भजिये,,, मरीज को डॉक्टर पर अपनी बातों का प्रभाव तत्काल दिखा,, उसने बेसन का जार खोल दिया,,,, आलू चाप ,,हगरु हॉटल के आपने खाये है कभी ,,,,अरे यंही अग्रसेन चौक पे,,,, गरमा गरम चार बजे ही मिलते हैं,,, पीले बटरे और लाल फटाका चटनी संग,,,लार फिर भरती जा रही थी,,सर ट्राई कीजिए बस,,,पतली बेसन की परत ,,,खड़े धनिये की महक ,,,और हरी तली मिर्च,,,मतलब ऊपर जितने कुरकुरे ,,भीतर से उतने ही गुतुर,,, परसा पत्ता के दोना में सपेट के खाइये,,,कन्हे तो मंगाउ,,,,लखन ले आएगा अभी,,अपना ड्राइवर,,, </div><div> पता नही कैसे !!डॉक्टर साहब को बच्चन जी की पंक्तिया याद आ गई,, मेल कराती मधुशाला,,, मधुमेय के इस रोगी की दिनचर्या की परतें यदि और खोली जाती तो वो मेज भांति भांति के जायकों और उनके साथियों से भर जाती ,,लखन ले आता अरे वही ड्राइवर,, ,,, इन्सुलिन में सहमति तो पहले ही बन चुकी थी,,, प्रिस्क्रिप्शन का उपसंहार था,,आलू गरिष्ठ होते है अतः चाप की बजाय भजिये पकोड़े ही बेहतर होंगे ,, पर सदा इन्सुलिन के साथ ,,,,</div><div><br></div><div>अनुभव</div><div><br></div><div><br></div><div> </div>ANUBHAV SHARMAhttp://www.blogger.com/profile/17033732857881627077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6455894358372172650.post-32529506101831614812023-07-20T03:22:00.001-07:002023-07-20T03:22:09.357-07:00फाइल<div>इन वजहों से मैं फाइल हूं</div><div>नियमोँ की तलाश में सदियों से जमी हुई बर्फ में जीवाश्म के माफिक,,मैं खुदगर्ज साबित होती रही,,आखिरकार जब हिमयुग गुजरेगा,,मेरे वलय गिने जावेंगे</div><div>और एक अदद मुआमले की तरह मुझे अजायबघर की फ्रेम में जड़ दिया जावेगा</div><div><br></div><div><br></div>ANUBHAV SHARMAhttp://www.blogger.com/profile/17033732857881627077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6455894358372172650.post-7456889258104715792023-07-09T21:15:00.002-07:002023-07-13T21:17:15.437-07:00बम भोले<div>खारुन अजीब सी नदी है,,,खारी तो है नही,,,और तीन चार बरसाती माह जो छोड़ दें तो नदी भी कंहा हैं,,,, हरी जलकुंभियों से बजबजाती ,,,महमहाती नाले सी,,था कभी राजाओं के दौर में पांच सौ साल गए ,, इस किनारे भोलेनाथ विराजे लिए और,,,बन गया महादेव घाट,,</div><div> ,एक मंदिर तो उसी दौर का है,,बांकी आज के नए नवेले देवताओं ,,गुरुओं ने अपने समाज भी चुन लिए और फिर आसन्दी लगा ली ,,,कहे तो साहब घाट में डट्टा मुट्टी लगी पड़ी है,,,, जरा आगे भी खिसकिये भाई,, उसनाता भक्त सर से पाँव तक पसीने में लथपथ लाइन को पेल रहा है फुडहड कनेर के गुलाबी पीले फूल ,,धतूरे के कटीले गेंद सरीखे फल,,,और बेल पत्र झील्ली में सम्भाले बोल बम बोल बम जयकारे लगा रहा है ,,,श्रावण मास का पहिला सोमवार ,,,हर हर महादेव,, </div><div> बम भोले,,,,इधर मंदिर के घण्टे गूंजते,,दीवार के उस पार भी हुंकार भरी जाती ,,,चिलम भभक रही बाबा जी वाली ,,उस नीम झाड़ के ठीक नीचे ,,,मस्तों का टोला,, जिनके ऊपर समय समय पे फुनगी में बिखरे,, घोसलों से कोकडों की आगामी पीढ़ी ,,केल्शियम से महमहाती बीट करती ,,,असली प्रसाद यही वितरित होता था,,,राखबे तो राख टाइप</div><div> श्मशान की चिता धुनगिया रही थी,,सीली लकड़ी में किसी नौ सीखिए ने राल क्या मार दी,,,बॉडी बरती ही नही,,,रहो उधर से छेना खुसेरो,,,,,लल्लाराम बैकुंठ धाम कूच कर गए,,,पिछली महाशिवरात्रि यंही बाबा बूटी धधका रहे थे ,,,आज रात ही </div><div><br></div><div> </div><div> </div><div><br></div>ANUBHAV SHARMAhttp://www.blogger.com/profile/17033732857881627077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6455894358372172650.post-74294220795852323282023-07-03T22:13:00.001-07:002023-07-03T22:13:57.732-07:00पानी के नीचे<div>पानी के नीचे ,,</div><div><br></div>जनाब जमीं पानी के नीचे है रिकार्ड कहता है,,,पर मौके पे पानी नदारत है,,,जरूर कुछ झोपड़ियां और बिना पलस्तर के बहुत सारे मकान मुस्कुराते से खड़े है,,,पटवारी,,पंजी अतिक्रमण की प्राचीन कहानी चीख चीख कर बयां कर रही है आरोपी सरपंच जिसने किसी काल मे पट्टे बांटे खुद<div>काल के गाल में समा गए,,, कच्ची नालियों में बहता काला पानी जरूर मौजूद था जो नीचे तो नही ऊपर ही छलक कर बज्ज्बजाते डबरे में डेल्टा सा बना रहा था,,,जिसपर खेलते नवजवान सुकर पिल्लों के साथ स्नान करते नंगे खिलखिलाते कमलू राजू की फौज,,,और किनारे उगी कोचई की झाड़ियां ,,,परिवेश की जैव विविधता को दो चार चांद लगा रहे थे शायद,,,</div><div> मीथेन गैस की तेज बदबू के बीच अतिक्रमण कारियों का ची ग्वेरा ,,,डायमंड अलियास दरसु दावा आपत्ति की नरियाती जबान बोल रहा था,,,,लुवाठ अतिक्रमण ,,,हमारा कका बबा का कब्जा है सड़क बिजली खेंचाय है ,,, आवाज की तीव्रता के बढ़ने के साथ ही गैस की बदबू की जगह ठर्रे की गम्भीर महक ने ले ली,,,,ये देखो पट्टा ,,,,उसने भारतीय संविधान की मानिंद एक ताम्र पत्र सा चिटहा अभिलेख पटल पे प्रस्तुत किया,,,कबरू दास मानिकपुरी सरपंच के मय हस्ताक्षर वाले,,, आसपास खड़ी क्रांतिकारी भीड़ में से कई पट्टे हवा में लहराते हाजिरी लगाने लगे,,,</div><div> वातावरण की इस गहमागहमी के बीच मैं एक बिलकुल ताजा राजश्व अधिकारी अपने ट्वेल्व ईयर सिजण्ड अनुभवी पटवारी एवम नीली वर्दी में सजे अनुवांशिक शक्ति प्राप्त कोटवार संग ,,,शेरशाह सूरी के दौर के जरीब और कुछ अजीब से चीथड़ों में फैले नक्शो की सहायता से इस मसले का समाधान खोज रहा था,,,</div><div> माननीय न्यायालय के आदेश का परिपालन ,,अवमानना,,,या फिर कबरू दास के पट्टे ,,,, लोक और तंत्र दोनों भौचक्के आमने सामने,,,, मोबाइल की घण्टी ने ये तन्द्रा तोड़ दी,,,मौका जांच की आंच दूर तलक महसूस हो गई थी,,, अपने माल असबाब समेटने के बाद गाड़ी में पटवारी साहब ने मेरे तात्कालिक निर्णय की योग्यता की पीठ थपथपाते हुए,,किसी पुराने अधिकारी की पिटाई की दन्तकथा भी सुनाई ,,,पर मेरे मन मे डार्विन उद्विकास की वही विचित्र थ्योरी घूम रही थी पानी के नीचे इतने बरसों से ,,,बिना गलफड़ों के ये मानव प्रजाति रहती है,,,,,इसी गहन सोच में डूबे हुए उस पार देखते मैंने पूछ लिया ,,ये बड़ी खाली पड़ी जमीन भी तो शासकीय भूमि होगी,,कोटवार उस निर्जन जमीन को इशारे से दिखाते हुए बोला,,साहब ये सब बड़े झाड़ का जंगल है,,,</div><div><br></div><div>अनुभव</div><div><br></div><div><br></div><div> </div>ANUBHAV SHARMAhttp://www.blogger.com/profile/17033732857881627077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6455894358372172650.post-77893368481937903762020-11-27T18:31:00.000-08:002020-11-28T16:31:05.670-08:00हहँसी ,,,<div> जानवर रोते है,,,खुश भी होते है,,पर हँसते नही है चिंपांजी जैसे हमारे पूर्वजों को छोड़ दे तो ,,,ये नेबत इंसान को ही मिली है,,कि हम दांत निपोर के मुस्कुरा भी पाते है और खिलखिला भी, गाय भैसो के झुंड साथ साथ चरते गुजरते है,,मजाल है कि कभी एक दूसरे को देख कर हँस मुस्कुरा लें वन्ही,,आदम का बच्चा जन्मजात मुस्कुराना जानता है ,,रोने के संग संग,,,यानि बात कुछ ऐसी है कि सभी जीव धारियों से जुदा हमने हँसना सीखा,, और सबसे ऊपर आ गए,,दिमाक के विकास में हमारी हँसी ने जरूर भूमिका निभाई होगी,,,,</div><div> रोने का ताल्लुक दुःख और भावुकता से है तो हँसी का खुशी और तार्किकता से,,,वैसे बेबात पे भी हँसने की कला में कई पारंगत होते है,,ग़ालिब ने भी कहा,,,पहले आती थी हर इक बात पे हँसी ,,अब किसी बात पे नही आती,,,,दुर्गंम छेत्र के पिछड़े आदिवासी आपकी हर इक बात पे हँस देंगे,,वन्ही बड़े और रसूखदारों की हंसी,,बड़ी मुश्किल से तहजीब के साथ खर्च होती है ,,,</div><div> हँसी का प्रथम प्रशिकच्छन शुरू होता है गुदगुदी से,,छोटे बच्चे को खिलखिलाना ऐसे ही सिखाया जाता है,,,गुदगुदी का कमाल यह है,,कि बन्दा हँसते हँसते रो भी पड़ता है,,,,पर ये केवल करीबियों पर ही आजमाया जा सकता है इस कर के दूसरा तरीका है मजाक,,,एक दूसरे पे या तीसरे पर ,,टेढ़ी मेढ़ी शारीरिक हरकतों से या फिर टेढ़े मेढ़े शब्दों से,,,अभिव्यक्ति,,,फिर क्या,,महफ़िल में मौजूद सभी की दन्तपंक्तिया खिल जाती है,,,चुटकुलों का इतिहास नही लिखा गया,,पर हमारे प्राचीन ग्रन्थों में नारद मुनि के विवाह प्रसंग या ऐसे ही सटायर से इनका विकास पकड़ा जा सकता है,,भरत मुनि के नाट्य शास्त्र में भी मसखरों की मौजूदगी जरूरी मानी गई है,, पर ऐसा नही है कि हर एक हँसी खुशी देती हो,,अट्टहास करते दानव भय पैदा करते है,,तो दूसरे को अपमानित करने वाली खिलखिलाहट,,, महाभारत का युध्द भी करवा देती है,,,</div><div> हँसी की आचार संहिता भी होती है,,की कितना हँसना है अपनेआप हँसने वाला पागल या फिर भंग के नशे में चूर होता है,,,,दतले आदमी को तालाब में डूबते कोई नही बचाता,, ये कह कर की साला मजाक कर रहा है,हँसोड़ टाइप के भी कई लोग होते है जिनकी हर बात हे हे हे हे,,, पर खत्म होती है,, ,पुरुषवादी मानसिकता,, महिलाओं के खुल कर हँसने की विरोधी रही है इस कर के पल्लू में अपनी हँसी छुपाई जाती थी,,,प्रेमी के वास्ते न्यूटन का चतुर्थ नियम है ,,लड़की हंसी तो फंसी,,,,</div><div> आज लाफ्टर क्लब की झूठी हँसी का दौर है,,हाई प्रोफाइल पार्टियों से लेकर मोबाइल सेल्फियों में ऐसी ही छदम दांत निपोरी प्रचलित है,,,चाहे जो हो,,मानव ने हँसने की कला जो विकसित की है ये हमारी सामाजिक विरासत है,,,चाहे खिल्ली उड़ाए या फिर ठहाके लगाए,,,पर समय निकाल कर इस बहुमूल्य विरासत को जरूर बचाएं,,,</div><div> </div>ANUBHAV SHARMAhttp://www.blogger.com/profile/17033732857881627077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6455894358372172650.post-72646299979337827232020-03-06T19:04:00.001-08:002020-03-06T19:04:26.928-08:00केरोनामिस्र अभियान के दौर में महान फ्रांसीसी सेनानायक नेपोलियन की सेना में प्लेग का प्रकोप हो गया,,,एक अनजान देश मे प्लेग की गुठलियों से तड़फते मरते सैनिक,,,वो भी तब जब प्लेग के लिए जिम्मेदार जीवाणु की खोज नही हुई थी,,,जब हताश सैनिको ने बीमार सैनिकों की सेवा से इंकार कर दिया ,,तब अचानक एक सुबह नेपोलियन स्वयं एक सैनिक शिविर में पहुचा,,जंहा प्लेग के रोगी भरे पड़े थे,, नेपोलियन ने एक बुरी तरह से बीमार रोगी सैनिक को अपनी बांहो में उठा लिया,,,,और सबको संबोधित करते हुए कहा,,,मैंने प्लेग के कारण का पता लगा लिया है,,,,यह रोग होता है भय से,,,जो कोई इससे डरता है उसपर ये रोग फैलता है,,फिर क्या,,था,,,अपने नायक के सम्बोधन पे यकीन कर,,सैनिक अपने साथियों की सेवा में जुट गए,,और फ्रांस की सेना इस रोग से मुक्त होकर,,मिश्र जीत गई,,, <div> कहने की गरज यह है,,की केरोना वायरस से बने वातावरण में सावधानी बेहद जरूरी है,,पर भय के वातावरण से इससे भला नही हो सकता,,भारत जैसे देश मे यदि ये महामारी फैलती है तो भय से ही मौतें न होने लगे,,इसलिए पूरे विश्वास के साथ इस महामारी का मुकाबला करना होगा,,</div>ANUBHAV SHARMAhttp://www.blogger.com/profile/17033732857881627077noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6455894358372172650.post-21392559179960286562019-03-03T23:48:00.001-08:002019-03-03T23:48:11.447-08:00<p dir="ltr">महाशिव रात्रि के ,,,जय हो<br>
भोले बाबा ल,,,भभूत चहिए<br>
औ ममता दीदी ल,,सबूत चहिये<br>
मीडिया,,,ल ब्रेकिंग न्यूज चहिये<br>
इमरान खान नोबेल प्राइज़ सपनात हे<br>
भारत ल मौलाना अजहर मसूद चहिये<br></p>
ANUBHAV SHARMAhttp://www.blogger.com/profile/17033732857881627077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6455894358372172650.post-89152198326256139412019-03-03T07:21:00.001-08:002019-03-03T07:21:24.450-08:00<p dir="ltr">मेरे भीतर ये कौन है,,कमबख्त जो<br>
मुझे दबा कर ,,मैं होता जा रहा है<br><br></p>
ANUBHAV SHARMAhttp://www.blogger.com/profile/17033732857881627077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6455894358372172650.post-3520279633868770162019-01-21T18:49:00.001-08:002019-01-21T18:49:50.974-08:00<p dir="ltr">कलीराम का आलू चाप,,,</p>
<p dir="ltr">यदि ये आलू चाप नही होता ,, तो शायद जीभ भी पूंछ के जैसे लुप्त हो लेती,,,,शुक्र है कलीराम जैसे फनकार मौजूद है जो उबले आलू के मसाले ,,में बेसन लपेट ऐसा गोला रचते है जिसमे स्वाद की दुनिया बसती है,,,खट्टी मही की चटनी में फर धनिया और लहसुनिया स्वाद ,,माने ,,,,फिर जान दे,,,<br>
</p>
ANUBHAV SHARMAhttp://www.blogger.com/profile/17033732857881627077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6455894358372172650.post-678472415767560612019-01-20T18:58:00.001-08:002019-01-20T19:03:20.347-08:00उम्र<p dir="ltr">यहा काय जनम दिन<br>
होंगे चालीस ऊपर तीन<br>
किसे कलेंडर लबारी मारत हे</p>
<p dir="ltr">रहेन लइका नान किन<br>
करत कई उतलइन<br>
बिकट लकर लकर बेरा गुजारत हे</p>
<p dir="ltr">अब नई भागन जा<br>
तै कतका भी बुला<br>
राजा थर्टी के उमर में थिरावत हे</p>
<p dir="ltr">अनुभव<br><br><br><br><br></p>
ANUBHAV SHARMAhttp://www.blogger.com/profile/17033732857881627077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6455894358372172650.post-76561103719491229412019-01-20T18:40:00.001-08:002019-01-20T18:40:03.114-08:00<p dir="ltr">उम्र घड़ी की सुइयों  से होकर ,,कलेंडर में पन्नो के संग बढ़ती है<br>
केक पे मोमबत्ती के साथ सजती है<br>
आंकड़े जो कन्हे सच तो वो अहसास है</p>
ANUBHAV SHARMAhttp://www.blogger.com/profile/17033732857881627077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6455894358372172650.post-68650605997676630972018-12-20T18:28:00.001-08:002018-12-20T18:28:30.900-08:00घनश्याम सिंह गुप्त<p dir="ltr">जब हम इतिहास खोजने को निकलते है,,तो परत दर परत खुद को ही पाते है,,,, पहचानते है,,,संजीव भाई ने इस किताब में ,काल सरिता के तल पे बैठे सुवर्ण को छन्नी से छाना है,,,इतिहास पुरुष घनश्याम सिंह गुप्त की उपलब्धियां ,,राष्ट्र निर्माण की वो बुनियादी ईंटे है,, जो छतीसगढ़ की माटी से बनी और तपी है ,,स्वतन्त्रता संग्राम के योद्धा के रूप में , हिंदी भाषा पुरोधा के रूप में ये किताब गुप्त जी के कार्यो को सामने लाती है वन्ही सविधान सभा मे हुए तर्को और विमर्शो को उतनी ही सरल भाषा मे अभिव्यक्त करती है,, श्री घनश्याम सिंह गुप्त की उपलब्धिया ,,,छत्तीसगढ़ के नागरिकों को सदैव गौरवान्वित करेंगी,, संजीव भाई की लेखनी को साधुवाद जो अपने नायक से ,,,अपने समृद्ध संस्कारो से फिर जोड़ दिया,,,,</p>
ANUBHAV SHARMAhttp://www.blogger.com/profile/17033732857881627077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6455894358372172650.post-27692515424157898072018-12-03T20:12:00.001-08:002022-11-27T02:04:08.537-08:00गौमूत्र कथा,,बठवा राजू की<p dir="ltr">गौमूत्र कथा,,बठवा राजू की</p>
<p dir="ltr">बठवा राजू था तो पेशे का जबरजस्त टेलर पर सुभाव से था भयंकर पियक्कड़ ,,,सूर्य नमस्कार के साथ जो बाटली खुलती फिर ,,गौधुली बेला तलक सुनहरा डिस्पोजल दुकान में चमकता रहता,, ,दारू की समस्त ऊर्जा,, दिन भर चौक में राजनीतिक बहस बाजी में औऱ बची खुची रात में धर्मपत्नी और घरवालो पर निकलती,,, रोज के गृह क्लेश और बठवा के गिरते स्वास्थ्य को देखते हुए घरवालो ने एक रोज निश्चय किया,, दारू अब छुड़ानी होगी ,,फिर क्या,,कई देशी नुख्शों की असफल अजमाइश के बाद पहुचे प्राचीन योगिक विद्या के आधुनिक व्यापारी बाबा जी के दर पर ,, और वन्ही बाबा जी से ब्रह्म ज्ञान मिला,,नश्वर संसार की सभी समस्याओं का समाधान किसी दूसरे पीले सुनहरे द्रव्य में छिपा है,,,वो है पवित्र गौमूत्र,,<br>
<br>
अब राजू ने गौमूत्र पान का भयंकर अभ्यास प्रारम्भ किया,,चमत्कारिक लाभ मिला,, जब कभी तलब तकलीफ देती फिर डिस्पोजल सज जाती ,,गौमूत्र से भर जाती,, नशा ऐसा चढ़ा की बोतल बन्द कम्पनी पॉर्ड्क्ट की जगह सीधे भैसस्थान,, , गौ परिवार माल खाने तक पहुच गई,,,,काली गाय का मूत्र,, बछरू का मूत्र,, बैला भैसा का मूत्र सभी ब्रांड आजमा लिए,, मोहल्ले में राजू गौमूत्र विज्ञान का आइंस्टाइन बन गया,,बहस के दौरान कोई भी मुद्दा हो ,,राम मंदिर से लेकर बढ़ती महंगाई तक बीच मे गौमूत्र महकने लगती,,घर मे भी नहाने के जल से लेकर साग सब्जी में भी मूत्र टपकने लगी, <br>
,प्रारम्भ में तो घर वालों बठवा के इस धर्मचक्रप्रवर्तन का घर घर गुणगान किया,,पर धीरे धीरे फिर कलह के स्वर उभरने लगे,,,बाई दाई पे दोष मढ़ने लगी,,पूरा घर कोठा कोठा महकने लगा,,एकर ले बने तो पहिले रहे,,जीना मुहाल होंगे,,पर अब तीर कोठार से निकल चुका था,,राजू को पूरी भी गौमूत्र में तली होनी चाहिए थी,, गली में जब वो निकलता तो चौक तक के गाय गरवा भाग जाते,, बरतन धरकर पीछे पीछे राजू,, बेजुबान जीव कैसे बताए कि हर वक्त विसर्जन सम्भव नही है ,,<br>
वक्त फिर पलटने लगा,,कलेजा जिगर जब फटने लगा,,तब घरवाले स्पेसलिस्ट डाक्टर के पास लेकर पहुचे,,, डाक्टर ने सभी रिपोर्ट देख कर अचरज में आंखे चौड़ी कर दी,,रोज एक हंडा गौमूत्र ,,,,पीते हो,,एक काम करो किडनी ट्रांसप्लांट करके,,,गाय की लगवा लो,,वो ही पचा पाएगी इसे,,, रक्त में हीमोग्लोबिन नही मूत्र तैर रही है,,इससे अच्छा स्वमूत्र पान कर लेते,,पचा तो लेते ,,घर वालो ने हाथ जोड़ लिये,,डाक्टर साहब कृपा कीजिये ,,कोई ठोस दवाई ही बताइए तरल नही,,आखिरकार समस्या समझ आ ही गई,,,दोष पीले द्रव्य का नहीं,, सुभाव का था,,जो भी करो अति में करो,,,फिर चाहे मदिरापान हो या गौमूत्रपान,,खबर है कि बठवा राजू इन दिनों रिहेबिलिटेशन सेंटर में भर्ती है,, पहला मरीज ,,गौ मूत्र पान छुड़वाने वास्ते,</p>
<p dir="ltr">अनुभव<br>
( भावुक लोग न पढे)</p>
ANUBHAV SHARMAhttp://www.blogger.com/profile/17033732857881627077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6455894358372172650.post-5704102296233623432018-11-05T18:36:00.001-08:002018-11-07T19:22:19.840-08:00चुनाव<p dir="ltr">ये नेता ल ओ नेता ल<br>
काला देबे वोट ,,रे जोहन<br>
यहा छाप ल उहा छाप ल<br>
कोंन जितही,, बता रे सोहन<br>
काला बनाबे विधि विधायक<br>
काकर होही जब्त जमानत,,<br>
बता रे गंगू,, बता समरू,, <br>
तन्हि बता दे ,,रे गोबरधन<br>
काबर बताबो गा,, हम हा काबर बताबो गा<br>
सब्बो ल आन दे,, हलवा पूरी लान दे<br>
पांच साल के लाघन हन,,<br>
हकन के खान दे,,,<br></p>
ANUBHAV SHARMAhttp://www.blogger.com/profile/17033732857881627077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6455894358372172650.post-1957836945251308852018-10-26T01:17:00.001-07:002018-10-26T01:17:49.365-07:00है राम<p dir="ltr">है <u>राम</u></p>
ANUBHAV SHARMAhttp://www.blogger.com/profile/17033732857881627077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6455894358372172650.post-10138292638267168742018-10-11T20:21:00.001-07:002018-10-11T20:21:34.953-07:00मूर्ति<p dir="ltr">माता जी, पीड़ा सहो<br>
पर मर्यादा में रहो<br>
अभिव्यक्ति वर्जित है<br>
संसार ,,महिषासुर शासित है<br>
शर्त नव रात्र की ,,मौनी सूरत की ही होगी<br>
तू बोलना नही देवी,, पूजा मूरत की ही होगी</p>
<p dir="ltr">,,,मी टू,,,</p>
ANUBHAV SHARMAhttp://www.blogger.com/profile/17033732857881627077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6455894358372172650.post-81507323488229444502018-10-06T20:10:00.001-07:002018-10-06T20:10:06.901-07:00<p dir="ltr">गंगू बड़ा,,,<br></p>
<p dir="ltr">गांव भर के मनखे सकलाया,, बड़े गौंटिया के आंगन में,,इकलौता लइका,, गंगू छानही में चघ गे कई के, साईकिल चिहे,, बड़े गौटिया गौटनिनीं दुलारत रहे,,,उतर जा गंगू,, लेबो साइकिल,, फेर अभी मन अभी,,तुरन्त,,,चौबीस <u>इंची</u></p>
ANUBHAV SHARMAhttp://www.blogger.com/profile/17033732857881627077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6455894358372172650.post-22076607239606600452018-09-29T21:54:00.001-07:002018-09-29T21:54:26.711-07:00<p dir="ltr">निर्वाचन जिसे कहते है,,फोकट का धंधा है<br>
निपट जाए तो मुक्ति है,,फंस जाए तो फन्दा है<br><br></p>
ANUBHAV SHARMAhttp://www.blogger.com/profile/17033732857881627077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6455894358372172650.post-50731986841800948742018-09-29T07:38:00.001-07:002018-09-29T07:38:06.282-07:00<p dir="ltr">कुत्ते भौंकते भौंकते दहाड़लने लगे<br>
डोंगरगढ़ न चढ़े एवरेस्ट पे झंडे गाड़ने <u>लगे</u></p>
ANUBHAV SHARMAhttp://www.blogger.com/profile/17033732857881627077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6455894358372172650.post-45149393319565413642018-09-28T20:29:00.001-07:002022-11-27T02:10:22.103-08:00तख्ते तहसीलदारी<p dir="ltr">तख्ते राजश्वअधिकारी,,तेरी तबीयत क्या है<br>
फक्र फ़िजूल के,, जाना फ़जीयत क्या है</p>
<p dir="ltr">तमगा बांह पे बांधे ,,हर तकलीफ झेल ली<br>
फिर लोग पूछते है ,,इनकी जरूरत क्या है</p>
<p dir="ltr">फर्ज मर्ज हो चुका ,,फरियाद किससे हो<br>
साहिबी ये रही अनुभव,,तो नौकर क्या है</p>
<p dir="ltr">अनुभव</p>
ANUBHAV SHARMAhttp://www.blogger.com/profile/17033732857881627077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6455894358372172650.post-40894418903614068322018-05-03T02:08:00.001-07:002018-05-03T02:08:22.949-07:00गुंडी<p dir="ltr">विवाह की पच्चीसवीं सालगिरह में सोधि के मायके से भाई आने वाले थे ,,घर पर सत्यनारायण की कथा थी,,सोधि ने मां को फोन पर कहा माँ पीतल की गुंडी भेज देना,,मां की आंखे डबडबा गई,गुंडी,,,<br>
अइ हवुला तको नही भेजे हे दाइज मा,, हवुला </p>
ANUBHAV SHARMAhttp://www.blogger.com/profile/17033732857881627077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6455894358372172650.post-60061226260541238832018-04-28T23:59:00.001-07:002018-04-28T23:59:03.000-07:00<p dir="ltr">हाथी देखा बड़ा जानवर,,<br>
कैसे पूंछ हिलाता है,,<br>
जंगल मे प्यासा रहता है<br>
भाग शहर को आता है<br>
हे हाथी! <br>
घेरी बेरी यू<br>
झन आने का कष्ट करो<br>
थोड़ा भी जो , है जंगल मे<br>
उसमे ही एडजस्ट करो</p>
<p dir="ltr">अनुभव<br></p>
ANUBHAV SHARMAhttp://www.blogger.com/profile/17033732857881627077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6455894358372172650.post-14495180898368597872018-03-07T20:09:00.001-08:002018-03-07T20:09:58.256-08:00<p dir="ltr">खाँसते कुत्तों की तस्वीर छाप देता है<br>
वो अखबार रोज ताजी खबर देता है</p>
ANUBHAV SHARMAhttp://www.blogger.com/profile/17033732857881627077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6455894358372172650.post-43659730661157826552018-03-01T03:23:00.001-08:002018-03-01T03:23:31.208-08:00फागुन<p dir="ltr">फागुन तिहार ये दारी<br>
किरिया परो संगवारी<br>
लकर लकर,,डिजिटल करबो<br>
औ सरर सरर ,,आधारी<br>
बांचे बिकट उधारी बन्धु<br>
बांचे बिकट,,उधारी<br>
तिल्दा आघु,,रायपुर आघु<br>
पाछू ,,अभनपुर सवारी<br>
किंजरन दे भुइँया के पहिया<br>
इज्जत के भाव है भारी<br>
चपक चपक के की बोर्ड ल<br>
देखा अपन दमदारी,,<br>
जय छतीसगढ़ महतारी,,</p>
<p dir="ltr">होली स्पेशल</p>
ANUBHAV SHARMAhttp://www.blogger.com/profile/17033732857881627077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6455894358372172650.post-47373820124202095812017-12-08T19:17:00.001-08:002017-12-08T19:17:32.253-08:00<p dir="ltr">उन्हा सरग हे,,<br>
जिनहा घर हे<br>
धन भाग मोर<br>
घर छतीसगढ़ हे</p>
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