शुक्रवार, 21 अप्रैल 2017

भट्टी

भट्टी किथें बत्ती ल
हाय दई,, बहिनी
किसे बुत्ता गेस ओ
मारे बग्ग बग्ग जरत रेहेस
यहा गर्मी में सिता गेस ओ
का करबे भट्टी ,,
देश हर बदलत हे
टट्टी खोली नई बनाय कि के
अधिकारी तको बदलत हे
अध्धि पौवा सकेल ले
लोकतंत्र भारी हे
ज्यादा झन मेच मेंचा
आज मोर ता ,,काली तोर बारी हे

अनुभव

रविवार, 16 अप्रैल 2017

खुद को तोड़ कर खुद को गढ़ता गया
देखता हूं देश मेरे साथ ही बढ़ता गया