सोमवार, 3 जुलाई 2023

पानी के नीचे

पानी के नीचे ,,

जनाब जमीं पानी के नीचे है रिकार्ड कहता है,,,पर मौके पे पानी नदारत है,,,जरूर कुछ झोपड़ियां और बिना पलस्तर के बहुत सारे मकान मुस्कुराते से खड़े है,,,पटवारी,,पंजी अतिक्रमण की प्राचीन कहानी चीख चीख कर बयां कर रही है आरोपी सरपंच जिसने किसी काल मे पट्टे बांटे खुद
काल के गाल में समा गए,,, कच्ची नालियों में बहता काला पानी जरूर मौजूद था जो नीचे तो नही ऊपर ही छलक कर बज्ज्बजाते डबरे में डेल्टा सा बना रहा था,,,जिसपर खेलते नवजवान सुकर पिल्लों के साथ स्नान करते नंगे खिलखिलाते कमलू राजू की फौज,,,और किनारे उगी कोचई की झाड़ियां ,,,परिवेश की जैव विविधता को दो चार चांद लगा रहे थे शायद,,,
            मीथेन गैस की तेज बदबू के बीच अतिक्रमण कारियों का ची ग्वेरा ,,,डायमंड अलियास दरसु दावा आपत्ति की नरियाती जबान बोल रहा था,,,,लुवाठ अतिक्रमण ,,,हमारा कका बबा  का कब्जा है सड़क बिजली खेंचाय है ,,, आवाज की तीव्रता के बढ़ने के साथ ही गैस की बदबू की जगह ठर्रे की गम्भीर महक ने ले ली,,,,ये देखो पट्टा ,,,,उसने भारतीय संविधान की मानिंद एक ताम्र पत्र सा चिटहा अभिलेख पटल पे प्रस्तुत किया,,,कबरू दास मानिकपुरी सरपंच के मय हस्ताक्षर वाले,,, आसपास खड़ी क्रांतिकारी भीड़ में से कई पट्टे हवा में लहराते हाजिरी लगाने लगे,,,
       वातावरण की इस गहमागहमी के बीच मैं एक बिलकुल ताजा राजश्व अधिकारी अपने ट्वेल्व ईयर सिजण्ड अनुभवी पटवारी एवम नीली वर्दी में सजे अनुवांशिक शक्ति प्राप्त कोटवार संग ,,,शेरशाह सूरी के दौर के जरीब और कुछ अजीब से चीथड़ों में फैले नक्शो की सहायता से इस मसले का समाधान खोज रहा था,,,
                    माननीय न्यायालय के आदेश का परिपालन ,,अवमानना,,,या फिर  कबरू दास के पट्टे ,,,, लोक और तंत्र दोनों भौचक्के आमने सामने,,,, मोबाइल की घण्टी ने ये तन्द्रा तोड़ दी,,,मौका जांच की आंच दूर तलक महसूस हो गई थी,,, अपने माल असबाब समेटने के बाद गाड़ी में पटवारी साहब ने मेरे तात्कालिक निर्णय की योग्यता की पीठ थपथपाते हुए,,किसी पुराने अधिकारी की पिटाई की दन्तकथा भी सुनाई ,,,पर मेरे मन मे डार्विन उद्विकास की वही विचित्र  थ्योरी घूम रही थी पानी के नीचे इतने बरसों से ,,,बिना गलफड़ों के ये मानव प्रजाति रहती है,,,,,इसी गहन सोच में डूबे हुए उस पार देखते मैंने पूछ लिया ,,ये बड़ी खाली पड़ी जमीन भी तो शासकीय भूमि होगी,,कोटवार उस निर्जन जमीन को इशारे से दिखाते हुए बोला,,साहब ये सब बड़े झाड़ का जंगल है,,,

अनुभव


               

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें