शुक्रवार, 27 नवंबर 2020

हँसी ,,,
        जानवर रोते है,,,खुश भी होते है,,पर हँसते नही है  चिंपांजी जैसे हमारे पूर्वजों को छोड़ दे तो ,,,ये नेबत इंसान को ही मिली है,,कि हम दांत निपोर के मुस्कुरा भी पाते है और खिलखिला भी, गाय भैसो के झुंड साथ साथ चरते गुजरते है,,मजाल है कि कभी एक दूसरे को देख कर हँस मुस्कुरा लें वन्ही,,आदम का बच्चा जन्मजात मुस्कुराना जानता है ,,रोने के संग संग,,,यानि बात कुछ ऐसी है कि सभी जीव धारियों से जुदा हमने हँसना सीखा,, और सबसे ऊपर आ गए,,दिमाक के विकास में हमारी हँसी ने जरूर भूमिका निभाई होगी,,,,
    रोने का ताल्लुक दुःख और भावुकता से  है तो हँसी का खुशी और तार्किकता से,,,वैसे बेबात पे भी हँसने की कला में कई पारंगत होते है,,ग़ालिब ने भी कहा,,,पहले आती थी हर इक बात पे हँसी ,,अब किसी बात पे नही आती,,,,दुर्गंम छेत्र के पिछड़े आदिवासी आपकी हर इक बात पे हँस देंगे,,वन्ही बड़े और रसूखदारों की हंसी,,बड़ी मुश्किल से तहजीब के साथ खर्च होती है ,,,
            हँसी का प्रथम प्रशिकच्छन शुरू होता है गुदगुदी से,,छोटे बच्चे को खिलखिलाना ऐसे ही सिखाया जाता है,,,गुदगुदी का कमाल यह है,,कि बन्दा हँसते हँसते रो भी पड़ता है,,,,पर ये केवल करीबियों पर ही आजमाया जा सकता है इस कर के दूसरा तरीका है मजाक,,,एक दूसरे पे या तीसरे पर ,,टेढ़ी मेढ़ी शारीरिक हरकतों से या फिर टेढ़े मेढ़े शब्दों से,,,अभिव्यक्ति,,,फिर क्या,,महफ़िल में मौजूद सभी की दन्तपंक्तिया खिल जाती है,,,चुटकुलों का इतिहास नही लिखा गया,,पर हमारे प्राचीन ग्रन्थों में नारद मुनि के विवाह प्रसंग या ऐसे ही सटायर से इनका विकास पकड़ा जा सकता है,,भरत मुनि के नाट्य शास्त्र में भी मसखरों की मौजूदगी जरूरी मानी गई है,, पर ऐसा नही है कि हर एक हँसी खुशी देती हो,,अट्टहास करते दानव भय पैदा करते है,,तो दूसरे को अपमानित करने वाली खिलखिलाहट,,, महाभारत का युध्द भी करवा देती है,,,
   हँसी की आचार संहिता भी होती है,,की कितना हँसना है अपनेआप हँसने वाला  पागल  या फिर भंग के नशे में चूर होता है,,,,दतले आदमी को तालाब में डूबते कोई नही बचाता,, ये कह कर की साला मजाक कर रहा है,हँसोड़ टाइप के भी कई लोग होते है जिनकी हर बात हे हे हे हे,,, पर खत्म होती है,, ,पुरुषवादी मानसिकता,, महिलाओं के खुल कर हँसने की विरोधी रही है इस कर के पल्लू में अपनी हँसी छुपाई जाती थी,,,प्रेमी के वास्ते न्यूटन का चतुर्थ नियम है ,,लड़की हंसी तो फंसी,,,,
       आज लाफ्टर क्लब की झूठी हँसी का दौर है,,हाई प्रोफाइल पार्टियों से लेकर मोबाइल सेल्फियों में ऐसी ही छदम दांत निपोरी प्रचलित है,,,चाहे जो हो,,मानव ने हँसने की कला जो विकसित की है ये हमारी सामाजिक विरासत है,,,चाहे खिल्ली उड़ाए या फिर ठहाके लगाए,,,पर समय निकाल कर इस बहुमूल्य विरासत को जरूर बचाएं,,,
        

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