रविवार, 9 जुलाई 2023

बम भोले

खारुन अजीब सी नदी है,,,खारी तो है नही,,,और तीन चार बरसाती माह जो छोड़ दें तो नदी भी कंहा हैं,,,, हरी जलकुंभियों से बजबजाती ,,,महमहाती नाले सी,,था कभी राजाओं के दौर में पांच सौ साल गए ,, इस किनारे भोलेनाथ विराजे लिए और,,,बन गया महादेव घाट,,
             ,एक मंदिर तो उसी दौर का है,,बांकी आज के नए नवेले  देवताओं ,,गुरुओं ने अपने  समाज भी चुन लिए और फिर आसन्दी लगा ली ,,,कहे तो साहब घाट में डट्टा मुट्टी लगी पड़ी है,,,, जरा आगे भी खिसकिये भाई,,            उसनाता भक्त सर से पाँव तक पसीने में लथपथ लाइन को पेल रहा है फुडहड कनेर के गुलाबी पीले फूल ,,धतूरे के कटीले गेंद सरीखे फल,,,और बेल पत्र झील्ली में सम्भाले बोल बम बोल बम जयकारे लगा रहा है ,,,श्रावण मास का पहिला सोमवार  ,,,हर हर महादेव,,  
              बम भोले,,,,इधर मंदिर के घण्टे  गूंजते,,दीवार के उस पार भी हुंकार भरी जाती ,,,चिलम भभक रही बाबा जी वाली ,,उस नीम झाड़ के ठीक नीचे ,,,मस्तों का टोला,, जिनके ऊपर समय समय पे फुनगी में बिखरे,, घोसलों से कोकडों की आगामी पीढ़ी ,,केल्शियम से महमहाती बीट करती ,,,असली प्रसाद यही वितरित होता था,,,राखबे तो राख टाइप
            श्मशान की चिता धुनगिया रही थी,,सीली लकड़ी में किसी नौ सीखिए ने राल क्या मार दी,,,बॉडी बरती ही नही,,,रहो उधर से छेना खुसेरो,,,,,लल्लाराम बैकुंठ धाम कूच कर गए,,,पिछली महाशिवरात्रि यंही बाबा बूटी धधका रहे थे ,,,आज रात ही 

                
               

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