शनिवार, 31 मई 2025

वाल्मीकि थापर कूच कर लिए,,बंदे ने भारतीय जैव विविधता को नया स्वर दिया,, बाघ हो या फिर लाल गर्दन वाले गिद्ध ,,,उनकी गहन दृष्टि ने इस दुनिया को कुछ नए आयाम दिए ,,,,उनको पढ़ कर जो जस्बात उमड़ते थे वो प्रेमचन्द की कफ़न या रेणु की मांरे गए गुलफाम से जुदा नहीं थे,, आपके जाने पर जो  खाली पन भर आया है उसे क्या कहूं 

शख्स रुखसत हुआ ,,अजीब वास्ता था
मैयत के आंसु से,, दर्ख़तों को सिजता रहा

गुरुवार, 29 मई 2025

नंदडू या कमल ककड़ी जो,,,हमारे यहां ढेस के नाम से मशहूर है,,, यखनी का शाकाहारी कलेवर,,,कभी चखा था ,,पहलगांव की वादियों में ,,आज अपने बावर्चीखाने में उस चटखारे की कवायत हुई,,यखनी है, पारंपरिक पारसी मिट्टी के बर्तनों में बनाने वाली ग्रेवी,, जो मध्यकाल में रेशम मार्ग से होते हुए पीर पंजाल की डेग तक पहुंची,, दही पुदीने ,,सौंफ इलायची,,, और क्रेमलाइज्ड ऑनियन की नजाकत नफासत ,,ताजे तिरछे कटे नंदडु का ताल मेल ,,, छत्तीसगढ़ की कढ़ियों से कुछ जुदा मिजाज लिए हुए,,ये 

बुधवार, 28 मई 2025

विनोद कुमार शुक्ल की शब्दावली में उनसे भेंट करना एक सरल, गहरी और कवित्वपूर्ण अनुभूति है। उनकी भाषा सहज है, मगर उसमें जीवन के गूढ़ सत्य छिपे होते हैं। यदि आप उनकी शैली में उनसे मिलने की कल्पना करें, तो शायद कुछ ऐसा होगा:  

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**"विनोद जी से भेंट**  

दरवाज़ा खुला था,  
मैंने अंदर झाँका—  
'आइए,' उन्होंने कहा,  
'बैठिए ज़मीन पर,  
कुर्सी तो है ही नहीं।'  

हाथ में चाय का प्याला,  
आँगन में धूप का टुकड़ा,  
बातें हो रही थीं  
किसी पेड़ के बारे में  
जो खिड़की से दिख रहा था।  

'क्या लिख रहे हैं अभी?' मैंने पूछा।  
उन्होंने काप पर लिखा हुआ एक शब्द दिखाया—  
'बारिश'  
फिर उसे काट दिया,  
'नहीं, यह नहीं,' वे बोले,  
'यह तो अभी होनी बाकी है।'  

चुप्पी में उनकी हँसी  
कमरे में गूँजी,  
जैसे कोई कविता  
अधूरी छोड़ दी गई हो  
ख़ुद ही अपने आप को याद दिलाने के लिए।"  

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विनोद कुमार शुक्ल की रचनाओं की तरह यह काल्पनिक भेंट सादगी में भी गहराई समेटे हुए है—जहाँ सामान्य चीज़ें असाधारण हो उठती हैं। उनकी कविताओं और उपन्यासों (जैसे *नौकर की कमीज़* या *दीवार में एक खिड़की रहती थी*) में यही भाष्य झलकता है।  

यदि आपको उनकी किसी खास रचना पर चर्चा करनी हो, तो बताइए!

सोमवार, 12 मई 2025

ji

इस दुनिया में आ ने के बाद क्या देखा मैने 
हमंम्मम,,
सुरज ,, चांद,,बादल ,, या डॉक्टर का चेहरा देखा मैने
कुछ भी याद नहीं,,बस मम्मी पापा का चेहरा देखा मैने