गुरुवार, 20 दिसंबर 2018

घनश्याम सिंह गुप्त

जब हम इतिहास खोजने को निकलते है,,तो परत दर परत खुद को ही पाते है,,,, पहचानते है,,,संजीव भाई ने इस किताब में ,काल सरिता के तल पे बैठे सुवर्ण को छन्नी से छाना है,,,इतिहास पुरुष घनश्याम सिंह गुप्त की उपलब्धियां ,,राष्ट्र निर्माण की वो बुनियादी ईंटे है,, जो छतीसगढ़ की माटी से बनी और तपी है ,,स्वतन्त्रता संग्राम के योद्धा के रूप में , हिंदी भाषा पुरोधा के रूप में ये किताब गुप्त जी के कार्यो को सामने लाती है वन्ही सविधान सभा मे हुए तर्को और विमर्शो को उतनी ही सरल भाषा मे अभिव्यक्त करती है,, श्री घनश्याम सिंह गुप्त की उपलब्धिया ,,,छत्तीसगढ़ के नागरिकों को सदैव गौरवान्वित करेंगी,, संजीव भाई की लेखनी को साधुवाद जो अपने नायक से ,,,अपने समृद्ध संस्कारो से फिर जोड़ दिया,,,,

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