सोमवार, 10 दिसंबर 2012

बिदेसी मन ले डर नयी लगे साहब ,,अपने मन ही मारत हे ,,,

न वालमार्ट के आये ले ,,
न पेप्सी पिजा खाए ले ,,
देश के भट्टा बैठे हे ,,,
टेबुल तरी के कमाई ले ,,,

जनता मरत महंगाई ले ,,
पाछु के उधारी चुकाय ले ,,
पैसा बचाही तभे वालमार्ट जाही 
लुवाठ होही ऍफ़ डी आई ले ,,,

अनुभव

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