शनिवार, 26 नवंबर 2011


सारी मुर्गिया,,,कसाब खा गया,,

जख्म भर भी नहीं पाए ,,,और देश शर्मिंदा है ,
 मुंबई तेरी धरती पे  ,,, आज भीं कसाब जिन्दा है ,,,

हम  माहिर है  ,,,अपने दर्द भुला देने में ,,,
 और शहीदों की ,,,मैयत को कन्धा देने में ,,

इंसाफ  मजबूर है ,,,देरी उसकी आदत जो है ,,
 तंत्र  मजबूर है ,,,,  करनी उसे सियासत जो है ,,,

देश की सारी मुर्गिया,,,कसाब खा गया,,,
मेहमान नवाजी ऐसे हुई ,,की मजा आ गया ,,,

जब तू फाँसी चढ़े ,,तो शायद मै भी न रहू ,,
किस कसाब के हत्थे चढू ,,,कैसे  कन्हु,,,,,

अनुभव


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें