छत पे छाई बदली क्यूँ उदास है पगली गली रही है ताक किसका खुले सौभाग् सुवर्ण कभी तो टपके कैच कौन ये लपके पर हाय री किसमत वही पुरानी उल्फ़त धूप सी चमकी स्माइल तेरे हांथो में दिखा मोबाइल तब समझ में आया झोल बाल इस इन अनदर गोल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें