प्रकृति में जीवों का रंग चयन अनायास ही नहीं होता,,,सात रंगों में से जीव अपने परिवेश में घुलमिल जाने ,, प्रजनन प्रक्रिया में मादा को लुभाने और अपने आहार के रंगों में रंग जाने के खातिर ,,जो त्वचा में पिगमेंट बनाते है उस मिलेनिन से ही ये तय होता है वो जीव कैसा दिखेगा,,,खास कर परिंदे तो रंगों की इस कूची का उपयोग अपने पंखों में विविधता से करते हैं,,हमारा बागीचा और परिवेश इन इंद्रधनुषीय संयोजनों से चहकता रहता है,,
इसी मिलेनिन पिगमेंट की व्याधि से कभी कभी कमाल भी होते है,,जैसे सफेद बाघ या काला तेंदुवा,,विज्ञान की भाषा में कहें तो ल्यूसिजम या फिर एल्बिनो,,, जहां हम इंसान अपनी प्रजाति में इस व्याधि के पीड़ितों को विसंगति के तौर पर देखते है वहीं किसी जानवर में मिल जाने पर इन्हें दुर्लभ कुदरती कारीगरी का नमूना मान कर बड़ा सम्मान दिया जाता है बार नवापारा के एक तालाब में एक ऐसी ही जंगली सिल्ही बतख दिखाई दी,, यानि लेसर विसलिंग डक,, ये नाम इस प्रजाति को मिला है इसकी तेज सिटी की आवाज से,,लगभग पूरे दक्षिण एशिया में पाई जाने वाली इन जंगली बतखों के चौकन्ने झुंड हमारे तालाबों नदियों पोखरों में पूरे साल जलीय पौधों और छोटे जीवों का लुत्फ लेते मिल जाएंगे,,,हल्के एवं गहरे भूरे ,, रंग की ये बतख जिसमें नर और मादा एक सी ही दिखती है ,,लेकिन उपर तस्वीर में दिखाई गई जोड़ी में एक बिलकुल सफेद रंग में है चोंच और आंखों के रंग को छोड़ कर,,माने ये एक ल्यूसिस्टिक बतख है,,जिसके दर्शन
छत्तीसगढ़ के इस हिस्से में बहुत दुर्लभ है,,, देश के अन्य भूभागों में यदा कदा इनकी रिपोर्टिंग जरूर हुई है,, लेसर विसलिंग डक की ये जोड़ी आने वाले दिनों में बर्ड वाचर्स एवं पक्छी वैज्ञानिकों को बार नवापारा आने को आकर्षित करते रहेगी,,
अनुभव शर्मा ,,तस्वीर एवं लेख