इकानामिक्स टाइम्स में पढ़ा समारू
धन बरसेगा,,,
खेत बिछा कर बैठ गया वो
धन बरसेगा,,,
धान ऊगा कर,, सोंच रहा था
धन बरसेगा,,,?
बादल गरजे,,बूंदाबांदी कर गुजर गए
मेडों को थोड़ा भिगा कर,, शहर गऐ
बादल देख कर चिढ़ता है,,
समारू ,,अब फिर से देशबन्धु पढता है!!!
समझ गया है
झँट बरसेगा
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