गुरुवार, 10 सितंबर 2015

बदली

छत पे छाई बदली
क्यूँ उदास है पगली
गली रही है ताक
किसका खुले सौभाग्
सुवर्ण कभी तो टपके
कैच कौन ये लपके
पर हाय री किसमत
वही पुरानी उल्फ़त
धूप सी चमकी स्माइल
तेरे हांथो में दिखा मोबाइल
तब समझ में आया झोल
बाल इस इन अनदर गोल

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