शनिवार, 26 नवंबर 2011

थपरा ता अंगड़ाई हे ,,आघू ता औउ कुटाई हे ,,

पडीस तमाचा चर्रस ले ,,
नेता गिर गिस भर्रस ले ,,
अनशन करेन तो नै पतियाव ,,
नै मानेव अब थपरा खाओ ,,,

देश के भुर्री तापत हो ,,
पेल के पैसा छापत हो ,,,
मनखे जब बगयावत हे ,,
ता गाँधी के राग अलापत हो ,,

गाँधी के बेंदरा अब देखत हे
बोलत हे ,,औउ समझत हे ,,
कोन नंगरा होके नाचत हे ,,
कोन खदर्र पहिन के नोचत हे ,,

जेन जनता ला अंधरा समझे हे ,,
जेन लोकतंत्र ला जेब माँ गोंजे हे ,,
तेन ये भोरहा माँ मत बैठे
इन्हा भगत सिंग घलो जन्मे हे ,,

थपरा ता अंगड़ाई हे ,,
आघू ता औउ कुटाई हे ,,
मनखे के पीरा ला दूर करो
यही माँ तुम्हार भलाई हे ,,,,,,,,,,

अनुभव

सारी मुर्गिया,,,कसाब खा गया,,

जख्म भर भी नहीं पाए ,,,और देश शर्मिंदा है ,
 मुंबई तेरी धरती पे  ,,, आज भीं कसाब जिन्दा है ,,,

हम  माहिर है  ,,,अपने दर्द भुला देने में ,,,
 और शहीदों की ,,,मैयत को कन्धा देने में ,,

इंसाफ  मजबूर है ,,,देरी उसकी आदत जो है ,,
 तंत्र  मजबूर है ,,,,  करनी उसे सियासत जो है ,,,

देश की सारी मुर्गिया,,,कसाब खा गया,,,
मेहमान नवाजी ऐसे हुई ,,की मजा आ गया ,,,

जब तू फाँसी चढ़े ,,तो शायद मै भी न रहू ,,
किस कसाब के हत्थे चढू ,,,कैसे  कन्हु,,,,,

अनुभव


रविवार, 6 नवंबर 2011


छत्तीसगढ़ हा आज कल बदल गे हे ,,
नवा नवा फेसन निकल गे हे ,,,
पाछू कोनो मिले बर आए,,
ता पूछे ,,का साग खाए  ,,,,,
आजकल ,,किथे ,,हाय ,,,
असिने एक दिन दुकालू बोधन ला हाय कर दिश ,,
बोधन किथे
कैसे  गा एकर   का मुड़ी कान पिराथ हे  ,,
जेन पीरा के मारे हाय -हाय चिल्लाथ   हे ,,
दुकालू बोलिस ,,अरे ज़ोजवा ,,
नै जानस,,,  ये शहरी  फेसन हे ..
कोई ले मिले ला हाय किथे ,,
औउ कोई ला बखाने बर ,,हाय - हाय किथे ..